बल की परिभाषा (Definition of force)
बल वह धक्का या खिचाव है जो किसी पिण्ड पर आरोपित होते हुए पिण्ड की अवस्था परिवर्तन (विरामावस्था से गति की अवस्था या गति की अवस्था से विरामावस्था) कि कोशिश करता है ।
यदि बल किसी लतीले पिण्ड पर आरोपित होता है तो वह अवस्था परिवर्तन के साथ- साथ उस पिण्ड के आकार परिवर्तन की भी कोशिश करता है ।
किसी पिण्ड पर बल के प्रभाव को बताने के लिये निम्नलिखित चार बिन्दुओं की आवश्यकता होती है-
(1):- बल का परिमाण ( Magnitude of force) अर्थात बल किती मात्र/ कितने न्यूटन का है।
(2):-बल की दिशा ( Directions of force) बल कि दिशा यह बतलाती है कि बल खिंचाव है या धक्का ।
(3):- बल की क्रिया रेखा (line of application) ,इस से पता चलता है कि बल किस क्रिया रेखा मे कार्य कर रहा
है।
(4):-बल की क्रिया बिन्दु (point of application) , क्रिया रेखा के किस बिन्दु पर सम्पूर्ण बल आरोपित हो रहा है , उसे बल की क्रिया बिन्दु कहते है।
इन चार बिन्दुओं से किसी भी बल की सम्पूर्ण जानकारी हमे मिल जाती है । इन चार बिन्दुओं को चित्र मे दर्शाया गया है-
बलो के प्रकार
बल निम्नलिखित दो प्रकार के होते है।
1:- आरोपित बल(Applied force)
2:-अनारोपित बल(Non Applied force)
1:-आरोपित बल (Applied force)
आरोपित बल वे सभी बल होते जो बाह्य कारको द्वार पिण्ड पर आरोपित किये जाते है। यह स्वतः समायोज्य बल नही है ।
उदाहरण के लिये किसी मेज को धक्का देना , गेंद को तेज आसान मे उच्छलना आदि प्रकार के सभी कार्यो को करने के लिये हम बल लगाते है तो बाह्य कारक हुए अतः बल आरोपित बल हुआ।
2:-अनारोपित बल (Non applied force)
अनारोपित बल वे सभी बल है जो बाह्य कारकों द्वारा आरोपित नहीं किये जाते बल्कि ये स्वतः आरोपित हो जाते है तथा यह बलो के प्रभाव से उत्पन्न होते है।
उदाहरण: - प्रतिक्रिया बल , घर्षण बल, गुरूत्व बल आदि बल किसी कारक के द्वारा लगाये नहीं जाते बल्कि ये स्वतः ही किसी दूसरे बल के परभावो से उत्पन्न हो जाते है।इस लिये स्वतः समायोजन बल भी कहते है।
बल निकाय (Force system)
जब कभी किसी पिण्ड या वस्तु पर दो से ज्यादा कितने भी बल कार्य करदे है तो बल निकाय की रचना होती है।हलाकी जब कभी किसी पिण्ड पर कोई एक बल आरोपित किया जाता है तो स्वतः ही दूसरे प्रतिक्रिया बल आरोपित हो जाते है ।दूसरे शब्दों मे "किसी पिण्ड पर अलग- अलग परिमाण एवं अलग- अलग दिशाओं के दो या दो से अधिक बल आरोपित होते तो यह बल निकाय कहलाता है।
उपर्युक्त चित्र मे F1, F2,F3 और F4 चार अलग -अलग दिशाओं व अलग- अलग परिमाण के बल आरोपित होते है आतः यह बल निकाय होगा क्योंकि इस मे दो से ज्यादा बल आरोपित होते है ।
बल निकाय का सामन्य जीवन मे उदाहरण: -
सीनेमा मे हिरो को कई गुंडे रस्सी फेक कर चारो तरफ से खीचते है तो हिरो पिण्ड और खींचने बाले बल ,सब मिलकर बल निकाय बनाते है। दूसरा उदाहरण एक गोल रिंग को तीन तरफ से बान्ध कर तीन लोग तीनो तरफ से खीचते तो बह भी बल निकाय बन जायेगा। इस अध्ययन मे हम यही पढ़ेगे कि किसी बल का कितना परभाव है और बलो के प्रभाव से पिण्ड किस ओर विस्थापित होगा या सन्तुलित होकर साम्यावस्था मे आ जायेगा ।
बल निकाय के बारे मे और जानने से पहले हमे कुछ महत्वपूर्ण परिभाषा को जानना होगा जो बल निकाय को स्पष्ट करने मे सहायक होगी ।
बलो की भौतिक स्वतंत्रता का सिद्धांत (Principle of physical independence of forces)
इस सिद्धांत के अनुसार किसी पिण्ड पर यदि कइ बल एक साथ आरोपित होते है तो इनमे से प्रत्येक बल अपना स्वतंत्रत परभाव दिखता है जोकि किसी अन्य बल के प्रभाव पर निर्भर नही करता है ।
बल संचरण शीलता का सिद्धांत (Principle of transmissbility of forces)
यदि किसी दृढ पिण्ड पर आरोपित होते हुए किसी बल को समान परिमाण, समान दिशा एवं समान क्रिया रेखा के किसी अन्य बल द्वार अन्य बिन्दु प्रतिस्थापित कर दिया जाए तो वास्तविक। बल के प्रभाव में कोई परिवर्तन नही होता है।
बल निकाय का परिणामी बल ( Resultant force of a force system) :-
यदि किसी बल निकाय के समस्त बलो (सदस्य बल) हटाकर इनके स्थान पर एक ऐसा बल आरोपित किया जाए जो कि पिण्ड पर समस्त बलो जैसा ही प्रभाव उत्पन्न करे तो यह बल बल निकाय का परिणामी बल कहलायेगा ।
बल निकाय का साम्यक बल (Equlibraint of force system)
ऐसा बल जो किसी पिण्ड को साम्यावस्था मे लाता है साम्यक बल कहलाता है
साम्यावस्था वह अवस्था होती है जिस मे पिण्ड अपनी अवस्था परिवर्तन नही करता बल्कि उसी आवसिथा मे बना रहता है।
यह बलाग आप Kee Study पर पढ रहै है। आगे हम बल निकाय के प्रकारो की चर्चा करेंगे उस के लिये अगला ब्लॉग पढे।
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